(Advisornews.in)
सुधीर पाण्डे
भोपाल(एडवाइजर):
मध्यप्रदेश के दोनों राजनैतिक दल, इन दिनों आंतरिक असंतोष के दौर से गुजर रहे हैं। भाजपा में आज दिनभर यह ख़बर गरम रही कि भाजपा के वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष बीडी शर्मा को उनके पद से हटा कर किसी अन्य की नियुक्ति वरिष्ठ तौर पर की जा रही है, पर यह बताया गया है कि बीडी शर्मा इस पद पर नहीं रहेंगे। यह जानकर उक्त समाचार की पुष्टि नहीं हो सकी है। पर इस ख़बर के चलते भाजपा के अंदर वरिष्ठ और कनिष्ठ नेताओं के मध्य जिस तरह प्रतिक्रियाओं का दौर शुरू हुआ उसमें यह स्पष्ट कर दिया कि सब कुछ सामान्य नहीं है। यदि बीडी शर्मा को बदला जाता है तो विकल्प के तौर पर प्रहलाद पटेल का नाम लिया गया। पर प्रहलाद पटेल इस पद पर बिठा दिये जाते हैं तो मुख्यमंत्री और प्रदेशाध्यक्ष दोनों ही पिछड़ा वर्ग से संबंधित हो जायेंगे और चुनाव के दौरान  अन्य जातियों के उपेक्षा का आरोप भाजपा पर लगेगा। वैसे भी भाजपा आने वाले विधानसभा चुनाव में सरकार बनाने की स्थिति को लेकर आश्वस्त नहीं है। आंतरिक विद्रोह पार्टी में इस तरह है कि बुंदेलखण्ड सहित राज्य के प्रत्येक हिस्से में सिंधिया समर्थकों और प्राचीन भाजपाई नेताओं के मध्य वार-पलटवार जारी है। 
यह ख़बर पिछलें तीन दिनों से गरम थी कि प्रदेश स्तर पर अध्क्षय के रूप में काम कर रहे बीडी शर्मा इस चुनाव के दौरान नेतृत्व संभालने के योग्य नहीं पाये जा रहे है। वास्तव में बीडी शर्मा प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद अपने स्पष्टवादी बयानों और कार्यकर्ताओं से व्यवहार के लिये चर्चित रहे। भाजपा के सूत्रों के अनुसार कोई भी बड़ा परिवर्तन राज्य में कभी भी दस्तक दे सकता है। वैसे भी भाजपा की राजनीति में परिवर्तन 10 मिनट के अंदर प्रभावी हो जाता है और इसका कोई उपयुक्त कारण भी नहीं बताया जाता। 
दूसरी और कांग्रेस अब डी.के. के ख़ौफ से परेशान है। दिग्विजय सिंह कमलनाथ के समूह का प्रभाव अब पूरी कांग्रेस पर पड़ रहा है। एक ओर कांग्रेस ने यह मान लिया है कि प्रदेश में उसके पक्ष में हवा नहीं आंधी बह रही है। इसलिये अरूण यादव, अजय सिंह जैसे दूसरे दर्जे के नेताओं को व्यर्थ का महत्व देकर भविष्य की जीत का श्रेय डी.के. के हाथ छिन लेना औचित्यपूर्ण नहीं है। यही ख़ौफ डी.के. विरोधी समूहों में भी फैलता जा रहा है, यह समझा जाता है कि 15 महीनों में जैसे सरकार चलाई गई थी वहीं पेटर्न यदि सरकार बनी तो भविष्य की कांग्रेस की राजनीति का होगा। भविष्य की भयावाह कल्पना करके डी.के. से विपरित विचारधारा रखने वाले कांग्रेसियों का समूह इन दिनों संशय में है। जिन नेताओं को राज्य में नब्ज़ टटोलने के लिये अधिकृत किया गया था उनमें से अधिकांश तो अपने आवंटित क्षेत्रों में नहीं पहुंचे है, जो पहुंचे है वे भयावाह गर्मी के कारण अपनी गतिविधियों को अंजाम नहीं दे सके है। कांग्रेस को अभी तक समझ नहीं आया है कि जयवर्धन जैसे युवा भविष्य के नेतृत्व को इंदौर और उज्जैन संभाग सौपा जाता है और पचौरी और गोविन्द सिंह जैसे वरिष्ठ नेताओं को दूर दराज के जिलें सौप दिये जाते हैं। इस बात का औचित्य क्या है, कांग्रेस में निर्णय कौन कर रहा है इस बात को लेकर पूरी कांग्रेस संशय में है। भविष्य के चुनाव के लिये सही सुझाव यदि कोई देना चाहे तो उसे ग्रहण करने वाला व्यक्ति कौन है, यह अज्ञात है। सब कुछ निहित है केवल दो शब्दों में वह शब्द है डी.के.। कांग्रेस की इस स्थिति में पार्टी के सदस्यों को केवल आसरा है आम जनता की उस आक्रोश का जो बार-बार भाजपा को चुनौती दे रहा है। 12 जून से प्रियंका गांधी मध्यप्रदेश में प्रवेश करेंगी, वास्तव में कांग्रेस का भविष्य अब प्रियंका गांधी के उज्जवल नेतृत्व में ही निहित है। यदि प्रियंका ने सही दिशा में अपने प्रचार अभियान को सीमित रखा तो कांग्रेस की विजय रथ को रोक पाना भाजपा के लिये मुश्किल होगा।