(Advisornews.in)
सुधीर पाण्डे
भोपाल(एडवाइजर):
कर्नाटक चुनाव के बाद जितनी भाजपा में निराशा होनी चाहिए थी उससे कहीं अधिक एक बुलबुले की तरह कांग्रेस में हर्ष का माहौल नज़र आ रहा है। ऐसा लगता है कि कर्नाटक में ही कांग्रेस ने मध्य प्रदेश के निर्वाचन अपने पक्ष में कर लिये है और कल ही उसे दो महान व्यक्तित्वों में से किसी एक का चयन मुख्यमंत्री पद के लिये करना है। कांग्रेस में आया यह जोश क्रमशः कार्यकर्ताओं तक पहुंच जाए तो परिणामों में भारी परिवर्तन देखने को मिल सकता है। 
चुनाव परिणामों की घोषणा के बाद भविष्य की चुनाव की अगुवाही कर रहे प्रदेशाध्यक्ष कमलनाथ और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह पूरी तरह सक्रिय हो गये है। उनकी सक्रियता को देखकर इस बात का अंदाज सहज रूप में लगाया जा सकता है कि सोशल मीडिया में अभी से चल रहे चुनावी सर्वेक्षण जो कांग्रेस को पूरे राज्य में भारी बहुमत के साथ सरकार बनाते दिख रहे है, वे गलत नहीं है। 
कांग्रेस को इस बात का अंदाज है कि कार्यकर्ताओं में जोश पैदा करके ग्रामीण क्षेत्रों तक चल रही राजनीति की हवा को बदला जा सकता है। इस हवा के साथ यदि कर्नाटक की तरह प्रियंका गांधी और राहुल गांधी ने भी मुह कर लिया तो मध्यप्रदेश में परिणाम अधिक बेहतर हो सकते है। कर्नाटक में मुख्यमंत्री घोषित किये गये सिद्धारमैया को शिवकुमार ने मुख्यमंत्री पद के लिये टक्कर दी थी। मध्यप्रदेश में तो आलम एक तरफा है, कमलनाथ को दिग्विजय सिंह जैसे वरिष्ठ नेता ने भविष्य का मुख्यमंत्री मान लिया है और स्वयं को इस दौड़ से बाहर कर लिया है। उन परिस्थितियों में जब कांग्रेस जीतती है कमलनाथ मुख्यमंत्री बनते है। राज्य को एक युवा उप मुख्यमंत्री की जरूरत होगी, जिसके सर पर कांग्रेस के किसी वरिष्ठ राजनीतिक चाणक्य का हाथ हो। मध्यप्रदेश की जमीन की राजनैतिक विसंगतियों को राज्य में केवल एक ही व्यक्ति बारीकी से समझता है, और उसे चुनाव के बाद इसका ईनाम भी मिलना चाहिए। दिग्विजय सिंह ने अपना पूरा जीवन मध्यप्रदेश की राजनीति के लिये समर्पित कर दिया। ईमानदारी से प्रशासन चलाने और बिना विकास किये चुनाव को जीत लेने का महारत उन्हें हासिल है। राजनीति के जानकारों के एक अनुमान के अनुसार भविष्य के लिये गये निर्णय संकेत यह इशारा करते है कि कमलनाथ को मुख्यमंत्री स्वीकार कर लेने में किसी कांग्रेस के नेता को कोई आपत्ति नहीं होगी। दूसरी ओर दिग्विजय सिंह के श्रम को देखते हुये राज्य में एक उपमुख्यमंत्री भी चुना जा सकता है जिसे युवा और प्रतिभाशाली होना अनिवार्य है। 
पिछली बार 15 महीने में बने मंत्री मण्डल में एक युवा विधायक को केबिनेट मंत्री बनाने के लिये पूरे मंत्री मण्डल के 28 सदस्यों को ही केबिनेट मंत्री बना दिया गया है, इस बार यह प्रयोग नहीं चलेगा। मुख्यमंत्री अनुभवी होगा उपमुख्यमंत्री राजनीति के अनुभवी परिवार से एक युवा और प्रतिभाशाली युवक होगा और शेष मंत्री थ्री टीयर सिस्टम के अंतर्गत चुने जायेंगे। 
कांग्रेस के हाई कमान की निगाहें मध्यप्रदेश की ओर हो चुकी है। असंतुष्ट कांग्रेस कार्यकर्ताओं को एक अवसर मिलने वाला है, जब वे राहुल गांधी प्रियंका गांधी और अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष से राज्य में ही सीधे मिलकर अपनी शिकायतें दर्ज करा सकते हैं।  इससे कांग्रेस को निचले स्तर पर फेले असंतोष को नियंत्रण करने में आसानी होगी।
दूसरी और भाजपा के वरिष्ठ नेताओं के एक पक्ष में इस आवश्यकता को प्रतिपादित किया है कि यदि भाजपा को चुनाव जितना है तो उसे अपना प्रदेश अध्यक्ष बदलना होगा। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह अथक श्रम करके राज्य की राजनैतिक स्थितियों को और लगभग 20 साल की सत्ता में रहते हुये सामने आ रही कमजोरियों को उपलब्धियों में लगे हुये है। भाजपा अध्यक्ष का बदल जाना यदि भाजपा की जीत का कारण बन सकता है तो राजनीति के जानकार इसे भी सस्ता शोभा मानते हैं। वैसे राज्यमंत्री मण्डल के मंत्रियों का आचरण सिंधिया के साथ दहेज में आये हुये अप्रवासी भाजपाई पार्टी के लिये काफी सर दर्द बने हुये है। इसके विपरित विभिन्न टीवी चेनल अपने कागजी और फर्जी सर्वेक्षणों में मध्यप्रदेश में स्पष्ट कांग्रेस की सरकार बनते हुये देख रहे है। भविष्य चाहे कुछ भी हो राजनीति के पहिये को कहीं स्थिर होना पडेगा, ताकि मतदाता अपनी मानसिक स्थिति को अपनी वर्तमान परिस्थिति से मिलाकर स्वयं का निर्णायक मत विकसीत कर सकें।