(Advisornews.in)
सुधीर पाण्डे
भोपाल(एडवाइजर):
मध्यप्रदेश के एक शासकीय उपक्रम में संविदा कर्मचारी के रूप में सब इंजीनियर की नौकरी करने वाली, हेमा मीणा नामक युवती ने सात साल की संविदा नौकरी के दौरान, सात करोड़ से अधिक सम्पत्ति अर्जित कर यह संकेत दे दिया है कि मध्यप्रदेश किस सीमा तक भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन और सुशासन की राह में है। सात करोड़ की यह अनुमानित राशि की सम्पत्ति लोकायुक्त पुलिस को हेमा मीणा के पास से मिली है। कल्पना की जा सकती है कि अपने ऊपर के अधिकारियों और राजनेताओं तक कितनी बड़ी राशि पहुंचाने में हेमा ने सात साल की नौकरी के दौरान अथम श्रम किया होगा। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री द्वारा घोषित स्वच्छ प्रशासन नीति पर हेमा मीणा की यह करतूत कई प्रश्न चिन्ह लगाती है। इसके पहले कांग्रेस के एक विधायक कृणाल चौधरी ने एक पत्रकारवार्ता के माध्यम से 200 से अधिक घोटालों का जिक्र राज्य सरकार के लिये किया था, परंतु हेमा मीणा की दास्तान अलग है।
संविदा में नियुक्ति प्राप्त कर हेमा मीणा ने राजधानी के पास बिलखिरिया क्षेत्र में सात सालों के अवैध कमाई के भरोसे एक बड़ा साम्राज्य खड़ा कर दिया। भ्रष्टाचारी राज्य में कितने निर्भित है यह उसका सबसे बड़ा उदाहरण है। पुलिस हाउसिंग कार्पोरेशन जैसी अर्ध शासकीय संस्था में रहते हुये एक संविदाकर्मी का सात साल में प्रति वर्ष करोड़पति बनना यह इशारा करता है कि राज्य शासन में सामर्थ्यवान भ्रष्टाचार का स्तर कितना बड़ा है। लोकायुक्त पुलिस ने दो वर्ष पूर्व हेमा मीणा की गतिविधियों के बारे में शिकायत मिली थी। यह माना जा सकता है कि लोकायुक्त को हेमा मीणा के विरूद्ध साक्ष्य इकट्ठा करने में दो वर्ष का समय लगा। परंतु यह भी तय है कि राज्य शासन के बड़े-बड़े अधिकारियों जो भ्रष्टाचार में लिप्त होने के बावजूद अपनी सेवाओं को पूर्व में सेवा निवृत्त हो चुके है के विरूद्ध जांच के अनुमोदन का आज भी इंतजार है। 
मध्यप्रदेश में भ्रष्टाचार की कहानी बहुत लम्बी है। पटवारी से लेकर चपरासी से होते हुये उच्च स्तर पर बैठे हुये प्रथम अधिकारी तक आरोपों के दस्तावेज हवा में तैरते रहते है। परंतु कोई भी सक्षम संस्था ऐसी नहीं है जो पिछले 20 वर्षो के दौरान इन्हें सत्यापित प्रमाणित कर संबंधित के विरूद्ध जांच कर सकें।
भाजपा की सरकार में भ्रष्टाचार की यह अनुठी कहानी वर्तमान में हेमा मीणा के विरूद्ध की गई इस कार्यवाही के माध्यम से एक बार पुनः खुलकर सामने आ गई है। लोकायुक्त यह स्पष्ट कर रहा है कि इस प्रकरण पर कठोरता के साथ कार्यवाही की जायेगी। परंतु इस तरह की कितनी हेमा मीणा मध्यप्रदेश में राजनैतिक संरक्षण में वर्तमान में पल रही है, उसका कोई हिसाब नहीं मिल सकता। राज्य शासन के पास इतना समय भी नहीं बचा कि चुनाव के पूर्व वह प्रशासकीय स्वच्छता के इस अभियान को परिणाम मूलक बना सके। 
प्रशासनीक तंत्र में यह माना जाता है कि निचले दर्जे का कर्मचारी ऊपरी स्तर पर बटने वाली मलाई की खुरचन पर जिंदा रहा है। इस खुरचन को प्राप्त करने के लिये भी उसे हर तरह का बलिदान करना होता है। वास्तव में लोकायुक्त को हेमा मीणा की उन कड़ियों का खुलासा करना चाहिए जिससे उसके द्वारा या उसकी जानकारी में अर्जित की गई अवैध धन राशि किस -किस स्तर तक किन-किन लोगों तक पहुंचाई जाती रही, तब भ्रष्टाचार के इस समूचे तंत्र का खुलासा होगा। परंतु ऐसा हो पाना संभव नजर नही आता। जांच एजेंसियों के ऊपर भी कई तरह के दबाव होते है, जांच की भी मर्यादा होती है, जिससे वास्तविक तथ्य शायद ही कभी सामने आ पाते है।