(Advisornews.in)
सुधीर पाण्डे
भोपाल(एडवाइजर):
मध्यप्रदेश में कांग्रेस आगामी विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखकर संगठन में व्यापक फेरबदल करने की योजना तैयार कर रही है, यह फेरबदल जनवरी माह में किया जाना प्रस्तावित है। परंतु कांग्रेस के वरिष्ठ नेता इस प्रस्तावित फेरबदल के वैचारिक आधार का अभी तक कोई पता नहीं कर पाये है। यह फेरबदल उम्र के अनुसार होगा, अनुभव के अनुसार होगा या क्षेत्र के अनुसार होगा। इस फेरबदल से मध्यप्रदेश कांग्रेस की जमीनी पकड़ कितनी मजबूत होने की संभावना है और क्या कांग्रेस इस फेरबदल के भरोसे आगामी चुनाव में अपने विजयी स्वरूप को पुनः प्राप्त कर सकेगी। 
इन प्रश्नों के उत्तर कांग्रेस के वरिष्ठ और कनिष्ठ राजनेताओं को पास नहीं है। यह समझ पाना मुश्किल है कि जिला, कस्बें और पंचायत स्तर तक के पदाधिकारियों का निर्धारण और चयन अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के माध्यम से कैसे हो पायेगा। दिल्ली में कांग्रेस का हाल तो यह है कि 24 अकबर रोड़, कांग्रेस मुख्यालय के ठीक सामने सड़क पार होने वाली गतिविधियों की खबर तक तो कांग्रेस को मिलती नहीं है और मध्यप्रदेश में यह दावा किया जा रहा है कि सक्षम कही जाने वाली प्रदेश कांग्रेस में जमीन के अंतिम छोर पर खड़े हुये गुमनाम नेता को पंचायत स्तर का संगठात्मक ढांचा सौपने के लिये पूरी योजना बनाली है।
मध्यप्रदेश में जहां कांग्रेस नेता घरों से बाहर निकलने में कार्यकर्ताओं से मिलने में अक्षम है। वहां इतना गहरा नेटवर्क किस निजी संस्थान के द्वारा कांग्रेस ने तैयार कर लिया यह शोध का विषय है। वैसे भी कांग्रेस की राजनीति केन्द्र सरकार की भांति अब निजी संस्थाओं के आकलन और सर्वेक्षण पर आधारित है। कांग्रेस के नेता प्रति घंटे, प्रति दिन या प्रति माह आने वाले सर्वेक्षण के नतीजों के आधार पर यह निर्धारित कर लेते है कि कांग्रेस इस बार आसमा पर छेद करके ही मानेगी। इस कल्पना शक्ति की उड़ान यह संकेत करती है कि जमीन से लेकर उस आसमा के छेद तक कुछ भी ठोस नहीं है सिर्फ एक बहकावा है। कांग्रेस हाई कमान के लिये कि मध्यप्रदेश में कुछ भी हो जाय सरकार तो कांग्रेस ही बनायेगी। 
कांग्रेस के संगठन में बदलाव एक भीतरी क्रांति को जन्म देगा। यह तय है कि संभवित परिवर्तन कुछ लोगों के शेष बचे हुये राजनैतिक जीवन को सुरक्षित करने के काम में आयेगा पर इससे गुटबाजी और परस्पर बेमनस्यता और बढ़ेगी। सही अर्थो में कांग्रेस के पास कोई ऐसा मजबूत नेता नहीं है, जिसके आभा मण्डल में कांग्रेस का कार्यकर्ता स्वयं को सुरक्षित महसूस कर सके। इसके विपरीत एक बहुत बड़ा डर चुनाव के दौरान मतदाता को प्रभावित करने के लिये विपक्षी दलों द्वारा धन आधारित राजनीति का होना है। कांग्रेस 20 साल से सत्ता से बाहर है, केवल बिच के 15 माह में कांग्रेस कुछ अर्जित कर पाई ऐसा लगता नहीं है। कोष जमा करने का कार्य इन 15 महीनों में भी एक या दो राजनैतिक परिवारों के द्वारा ही किया गया। वर्तमान में कांग्रेस यदि आश्रित है तो केवल अपने प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ के आर्थिक संसाधनों के भरोसे। हर स्तर का कार्यकर्ता यही कोशिश कर रहा है कि चुनाव में वो अपने क्षेत्र में अपनी स्थिति को मजबूत बना सके। और यही कारण है कि कमलनाथ राज्य में अपने स्थिति को सुरक्षित रख पाने में अभी सक्षम हुये। कांग्रेस में बदलाव होगा पर किस गुट को कितने पदाधिकारी मिलेंगे यह तय करेगा कि राज्य में किस बड़े नेता के बेटा सत्ता को अधिग्रहित करता है। वास्ताव में वर्तमान की राजनीति में कांग्रेस के छोटे नेता या कार्यकर्ता को कोई सुरक्षित स्थन मिल रहा है इसमें संदेह है और यही संदेश जन्म दे रहा है कि विधानसभा के पहले कहीं कांग्रेस एक और विघटन की त्रासदी न झेल ले।