मध्यप्रदेश कांग्रेस का वास्तविक संकट यह है
(Advisornews.in)
सुधीर पाण्डे
भोपाल(एडवाइजर): क्या मध्यप्रदेश में विपक्षी दल के रूप में अपनी सांकेतिक उपस्थिति दर्ज कराने वाली कांग्रेस वही दल है, जो लगभग 20 वर्ष पूर्व राज्य की एक प्रमुख शक्ति हुआ करती थी। जिस कांग्रेस के नेताओं और उनके कारनामों के किस्सें राज्यभर में कहानियां बनकर सुनें और सुनाएँ जाते थें। कांग्रेस की वह पुरानी इच्छा शक्ति और लड़ने की क्षमता एकाएक कैसे सिमट गई। वो कांग्रेस जो अपने प्रत्येक कार्यकर्ता के संरक्षण के लिये विपक्ष में रहने के बावजूद चौराहे, गली, कस्बों में लगातार संघर्ष करती थी, वास्तव में वह कांग्रेस गई कहां।
मध्यप्रदेश में कांग्रेस इतिहास की वस्तु बनती जा रही है। जिससे जुड़ी हुई कहानियां अब आने वाली पीढ़ी को उत्साह नहीं बोरियत का एहसास कराती हैं। वास्तव में आज का युवा कांग्रेस को किसी और चश्में से देखने लगा है। जिसमें उसे सच्चाई इसलिये भी नजर आती है कि कांग्रेस की जाती हुई पीढ़ी, निर्माण की तरफ से अलग हटकर निजी स्वार्थो और फूहड़ स्वांग में आकर सिमट गई है। कांग्रेस के पास अभी भी सुरेश पचौरी, अजय सिंह, अरूण यादव, उमंग सिंघार, राजेन्द्र सिंह जैसे झुझारू नेता मौजूद हैं, जो स्वयं अपने प्रभा मण्डल को पूरी तरह ढांककर बैठे हुये हैं। पीढ़ियां बदलने के साथ प्रभावशील हो सकने की संभावना से भरपूर जिस नई पीढ़ी ने कांग्रेस में जन्म लिया उसे एक वातावरण दे पाने में पार्टी असफल हो गई।
यहीं नहीं चाटुकारिता में माहिर षड़यंत्रकारी नेताओं की बूढ़ी पड़ती हुई जमात ने अपनी औलादों को पदोन्नत करने के लिये जिस दर्जे का षड़यंत्र किया, संभवतः अस्तित्वहीन होती हुई पीढ़ी उसे समझ ही नहीं सकी। इस पीढ़ी को विश्वास में लेकर षड़यंत्रकारियों ने उन्हें प्रदेश स्तर का नेता बनने की काल्पनिक प्रेरणा दी। इतना ही नहीं जब-जब समय मिला षड़यंत्रकारियों ने उभरने वाले नेतृत्व के आधार रहे पायों को कांटनें में भी संकोच नहीं किया। स्थिति यह हो गई कि जब किसी ने खड़े होने की कोशिश की और षड़यंत्रकारी नेता को आदर्श मानकर कदम आगे बढ़ाये वहां नये कांटे बिछा दिये गये।
कांग्रेस की एक पीढ़ी पूरी तरह समाप्त हो गई। समाजवादी आंदोलन से जुड़े हुये नेताओं की भूमिका मध्यप्रदेश कांग्रेस में हमेशा से रही है। कांग्रेस के सिद्धांत समाजवादियों के जितना करीब बैठते थे उतना संभवतः किसी अन्य दल के करीब नहीं। वास्तव में कांग्रेस समझ ही नहीं सकी की उसे मध्यप्रदेश की राजनीति को पैसे से खरीदने में कितनी सफलता मिल सकेगी। मध्यप्रदेश का भूगोल वास्ताव में समूचे हिन्दुस्तान का प्रतिनिधित्व करता है। यहां षड़यंत्र यदि जन कल्याणकारी योजनाओं के विश्वासपूर्ण क्रियान्वयन के साथ समन्वय बना पाते हैं तो राजनीति में नई सफलता मिल सकती है। मध्यप्रदेश के षड़यंत्रकारी नेताओं ने वातावरण तो निर्मित किया, पर जनभावनाओं को उनके साथ खड़े होकर प्रेरित कर पाने में वे असफल रहे। परिणाम यह है कि कांग्रेस के लिये जमीनी आधार पर योजना बनाने में माहिर सुरेश पचौरी, पूरे प्रदेश को विश्वसनीय कार्यकर्ताओं से भर देने वाले अजय राहुल सिंह, सहकारिता और किसान आंदोलन के माध्यम से राज्य के प्रत्येक अंचल को जोड़नें वाले अरूण यादव और आदिवासी राजनीति को संगठित करने की क्षमता रखने वाले उमंग सिंघार कांग्रेस की राजनीति से लुप्त हो गये।
आज उमंग सिंघार पर पुलिस में प्रकरण कायम है। समाजवादी की धारा को जिन्दा रखना वाले राजा पटेरिया की एक मानवीय भूल के कारण वे जेल में है, सुरेश पचौरी अपनी समस्त योजनाओं के साथ अपने घर में कैद है और कांग्रेस अगले चुनाव में जीत के नगाड़े बजाने के लिये सपनों की दुनिया में खोई हुई है। उत्साह इतना ज्यादा है कि नगाड़े बजने के पहले ही 76 साल के बूढ़े सड़क पर नृत्य कर रहे हैं और युवाओं के नाम पर मध्यप्रदेश में अस्तित्वहीन नेता फेसबुक में प्रतिदिन मुंडन, खतने, शादी, तीलक आदि समारोह में पहुंच कर सोशल मिडिया के माध्यम से अपनी सक्रियता बनाये हुये हैं। आज की कांग्रेस पर कांग्रेस को विश्वास हो या तो चलता है, पर मतदाता कितना विश्वास करेगा यह समझ पाना असंभव है। यदि कांग्रेस इसके बाद भी अगले विधानसभा निर्वाचन में बेहतर स्थिति में रहती है तो उसके लिये कांग्रेस की कोई योजना या उसका क्रियान्वयन जिम्मेवार नहीं होगा, ना ही कोई चेहरा प्रदेश स्तर पर स्थापित होगा। केवल वर्तमान सरकार की 20 साल की गतिविधियां और उससे पैदा हुआ जनआक्रोश उस विजय का आधार बनेगा।