म.प्र. में कांग्रेस-भाजपा असंतोष से पीड़ित
(Advisornews.in)
सुधीर पाण्डे
भोपाल(एडवाइजर): जैसी उम्मीद की जा रही थी कि कांग्रेस की भारत जोड़ों यात्रा और गुजरात में आने वाले चुनाव परिणाम क्रमशः कांग्रेस और भाजपा की राजनीति में नई राजनैतिक संभावना को जन्म देंगे सही सिद्ध हुई। कांग्रेस की भारत जोड़ों यात्रा में चंद लोगों को ही प्राथमिकता के आधार पर प्रमुख रूप से सामने लाया गया, और कुछ नेताओं के तो राजनैतिक जीवन पर ही संकट खड़ा कर दिया गया। दूसरी और गुजरात राज्य के परिणाम भारतीय जनता पार्टी की प्रदेश राजनीति में नई महत्वकांशा और फेरबदल की संभावनाओं को मजबूत कर गये। यह मांग की जा रही है कि गुजरात की तरह ही मध्यप्रदेश में भी चुनाव के पूर्व बहुत कुछ बदल दिया जाय, और चुनाव शिवराज के चेहरे पर नहीं प्रधानमंत्री मोदी के चेहरे पर लड़ने की तैयारी की जाय।
भारत जोड़ों यात्रा जहां से मध्यप्रदेश में घुसी थी, वहीं से कांग्रेस के विधायक उमंग सिंघार और पूर्व कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अरूण यादव को षड़यंत्रपूर्वक अज्ञात में भेज दिया गया। यह दोनों ही नेता दिल्ली में राहुल गांधी के नजदीक माने जानते थे, और मध्यप्रदेश में कई वरिष्ठ नेताओं की गतिविधियों पर टिप्पणी करके ये यदा-कदा विवादों के केन्द्र में रहते थे। उमंग सिंघार का पारिवारिक विवाद ठीक उस समय उठा जब यात्रा मध्यप्रदेश के करीब थी। दूसरी और अरूण यादव के सामने निर्दलीय विधायक सुरेन्द्र सिंह शेरा को यात्रा में प्राथमिकता देकर अरूण को भी सीमाओं में बांध दिया गया। ऐसा नहीं है कि पूरी मध्यप्रदेश यात्रा के दौरान राज्य के सभी कांग्रेसियों को बराबर अवसर यात्रा से जुड़ने के लिये दिया गया हो। यात्रा के दौरान वह तबका अधिक प्रभावशाली रहा जिसे मनोरंजन, नृत्यकला और तंत्र विज्ञान का अधिक ज्ञान था। यात्रा मध्यप्रदेश में कितनी प्रभावशील रही इसका अनुमान भविष्य में इसके राजनैतिक प्रभाव का अध्ययन करने के साथ ही पता लगेगा।
दूसरी और भाजपा में भी गुजरात चुनाव में के बाद तनाव का माहोल है। गुजरात फार्मूले के आधार पर मध्यप्रदेश को भविष्य के राजनीति के लिये तैयार करने की कोशिश भाजपा का एक वर्ग कर रहा है। यह कहना गलत नहीं होगा कि लगभग दो दशकों से लगातार चल रहें शिवराज शासन के विरोध में पार्टी अंदर ही बगावत के बीज पड़े हुये हैं। भाजपा के कई नेता और कार्यकर्ता आने वाले निर्वाचनों में इस लम्बें कार्यकाल में हुई अव्यवस्था को पार्टी की भारी पराजय से जोड़कर देखते है। दूसरी और सिंधिया समूह द्वारा पार्टी में प्रवेश के बाद एक नये तंत्र का विकसीत हो जाना भी पार्टी के लिये चिंता का विषय हैं। सिंधिया समर्थक मंत्री भाजपा और संघ के सत्ता संचालन संबंधित सूत्रों को दर किनार कर अपनी शैली में ही राजनीति कर रहे है।
परिणाम यह है कि भजपा का आम कार्यकर्ता आज उन विभागों में अपनी पहुंच को शून्य पाता है जहां सिंधिया समर्थन मंत्री बैठे हुये है। दूसरी और राज्य के क्षेत्रवाद और जातिवाद पद और अधिकारों का बटवारा अभी तक नहीं हो पाया है। कुछ क्षेत्र तो ऐसे है जहां का प्रतिनिधित्व ही भाजपा शासन के दौरान शून्य रहा है, भाजपा में मुख्यमंत्री में पद में परिवर्तन के लिये दौड़ चल रही है। पार्टी के एक विधायक द्वारा एक पत्र अखिल भारतीय अध्यक्ष को भेजा गया है, जिसमें गुजरात के सफल माडल को मध्यप्रदेश में अपनाएं जाने की वकालत की गइ है। बताया जाता है कि पार्टी के कई बडे़ नेता इस पत्र में व्यक्त की गई भावनाओं से सहमत है।
आगामी विधानसभा चुनाव में यदि भाजपा व्यवस्था विरोधी हो मतों के कारण कमजोर पड़ती नजर आती है, तो कांग्रेस की राजनीति में भी वह दमखम नजर नहीं आता, जो जमीन मे खड़े मतदाता को उसकी और पूर्णरूप से आकर्षित कर सके। राजनैतिक के विचाराकों का कहना है कि यदि भाजपा ने चुनाव अभियान के दौरान तीन-चार बिन्दुओं पर अपने कूटनीतिक के कौशल का उपयोग कर लिया तो आने वाले चुनाव कांग्रेस के लिये बहुत मुश्किल हो जायेंगे। यहां यह स्मरण रखना होगा कि आम आदमी पार्टी भी इस बार मध्यप्रदेश में प्रवेश करेगी, जिसका विपरित प्रभाव राज्य की राजनीति में मत विभाजन पर पडेगा। दूसरी और भाजपा यदि समय रहते सही राजनीति निर्णयों को ले पाने में सफल रही, तो इस बार पुनः वह सत्ता पर अपना कब्जा कर सकती है। प्रारंभिक रिपोर्ट हलाकि भाजपा के पक्ष में नहीं है पर कांग्रेस का निष्क्रिय पड़ा हुआ राजनैतिक तंत्र और उसकी हवाई राजनीति कांग्रेस को एक निश्चित विजय की ओर ले जाती हुई प्रतित नहीं हो रहीं है।