अपना एमपी गज्ज़ब है..33
(Advisornews.in)
एमपी में "गुजरात मॉडल" की मांग उठी...
गुजरात विधानसभा चुनाव में बीजेपी की जीत का रिकॉर्ड बनने के साथ ही एक बार गुजरात मॉडल चर्चा में आ गया है। हालांकि अभी तक गुजरात में मुख्यमंत्री ने शपथ नही ली है लेकिन गुजरात मॉडल की मांग अन्य राज्यों से उठना शुरू हो गई है।मजे की बात यह है सबसे पहले एमपी से यह मांग आई है। मांग करने वाला कोई सामान्य कार्यकर्ता या नेता नहीं है। यह मांग की है बीजेपी के वरिष्ठ विधायक नारायण त्रिपाठी ने। इसके लिए उन्होंने राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा को पत्र भी लिखा है।
गुजरात एमपी का पड़ोसी है। यहां से बीजेपी के बहुत से नेता और मंत्री गुजरात में चुनाव प्रचार करने भी गए थे। शायद यही वजह है कि 8 दिसंबर को चुनाव नतीजे आने के साथ ही यहां गुजरात मॉडल की सुगबुगाहट शुरू हो गई है।
इसकी शुरुआत बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव और वरिष्ठ नेता कैलाश विजयवर्गीय ने की। कैलाश शनिवार को भगवत कथा सुनने हरदा गए थे। जया किशोरी द्वारा कही जा रही इस कथा के यजमान हैं -शिवराज सरकार के वरिष्ठ मंत्री कमल पटेल।स्वभाव से भजन गायक कैलाश ने कमल की फरमाइश पर मंच पर एक भजन भी गाया। जया किशोरी की कथा में अदभुत दृश्य देखने को मिला!कैलाश भजन गा रहे थे और कमल नाच रहे थे। इस कथा में शिवराज मंत्रिमंडल के अन्य सदस्य भी शामिल हो चुके हैं।
बताते हैं कि कथा में कुछ दिलजले पत्रकारों ने राजनीति घुसेड़ दी। उन्होंने बीजेपी महासचिव से गुजरात मॉडल पर सवाल पूछ लिया!बंगाल चुनाव के बाद आराम कर रहे कैलाश ने उत्तर दिया - गुजरात मॉडल तो पूरे देश में लागू किया जाना चाहिए! अब एमपी देश के बाहर तो है नहीं।यहां के बीजेपी नेताओं का एक बड़ा वर्ग इस मॉडल की ओर टकटकी लगाए देख रहा है।
कैलाश विजयवर्गीय के बयान ने इन नेताओं को बड़ा सहारा दिया है। क्योंकि उन्हें लग रहा है कि गुजरात मॉडल लागू किए जाने के लिए सबसे फिट केस एमपी का ही है। यहां भी ठीक वही हालात हैं जो गुजरात में थे!और समय भी बिल्कुल उचित है!
कैलाश के बयान का पोस्ट मार्टम चल ही रहा था कि मैहर से भाजपा के विधायक नारायण त्रिपाठी एक कदम आगे बढ़ गए। उन्होंने तो पार्टी अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा को चिट्ठी ही लिख दी!नारायण ने अध्यक्ष से कहा है कि मध्यप्रदेश में गुजरात मॉडल तत्काल लागू किया जाना चाहिए। सत्ता और संगठन दोनों में ही आमूल चूल परिवर्तन किया जाना चाहिए।
अब थोड़ा नारायण "पुराण" हो जाए! नारायण त्रिपाठी सबसे पहले समाजवादी पार्टी के टिकट पर विधानसभा पहुंचे थे।2013 का चुनाव उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर लड़ा और जीते भी।
बाद में उनका कांग्रेस से मन भर गया।उन्होंने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह की ओर मित्रता का हाथ बढ़ाया। दोनों के हाथ मिले।नारायण ने कांग्रेस का हाथ झटक दिया।शिवराज और बीजेपी के हो गए।विधानसभा की सदस्यता भी छोड़ दी!फिर चुनाव लडा।शिवराज ने पूरी मदद की और वे बीजेपी के एमएलए बन गए।
2018 के चुनाव में बीजेपी हार गई।शिवराज की गद्दी चली गई। नारायण त्रिपाठी एमएलए तो बन गए लेकिन मंत्री बनने का सपना टूट गया। 5 महीने की कमलनाथ सरकार के दौरान कई बार ऐसा लगा कि नारायण कमल छोड़ कमलनाथ के साथ हो जाएंगे। लेकिन ऐसा होता उससे पहले कमलनाथ ही खेत रहे!
शिवराज सिंधिया की मदद से फिर मुख्यमंत्री बने। लेकिन राजनीतिक मजबूरी की वजह से वे अपने ही लोगों का भला नही कर पाए।
नारायण त्रिपाठी फिर बगावत के मूड में आ गए। लेकिन इस बार उन्होंने पार्टी में रहकर ही अपने तेवर दिखाए। कई बार अपनी ही सरकार को कटघरे में खड़ा किया।कड़वे सवाल भी उठाए।
लेकिन अब उन्होंने केंद्रीय नेतृत्व से एमपी में गुजरात मॉडल लागू किए जाने की मांग करके सरकार और संगठन दोनों पर ही निशाना साध दिया है। यह अलग बात है कि नारायण ने जो बात लिखित में कही है वह बीजेपी के बहुत से नेताओं के मन में है। उनके मन की है। लेकिन वे कह नही पा रहे।या कहें कि कहने की हिम्मत नही जुटा पा रहे हैं।
लेकिन कैलाश विजयवर्गीय की बात पर नारायण खुल कर खेल गए।चिट्ठी लिख कर दिल्ली को रास्ता दिखा दिया।
यह अलग बात है कि अपने गृह राज्य हिमाचल प्रदेश में पार्टी की करारी हार के बाद नद्धा खुद सिमटे हुए हैं। दिल्ली बीजेपी के अध्यक्ष ने इस्तीफा देकर उनका संकट और बढ़ा दिया है। देखना यह होगा कि नारायण की चिट्ठी जगत प्रकाश नड्डा की ही मेज पर पहुंचेगी या फिर कोई और ही उसे पढ़ेगा।
पर इतना तो तय है कि बीजेपी एमएलए के तौर पर नारायण त्रिपाठी ने जो दांव खेला है वह है तो जोरदार। वैसे सफलता का सबसे शानदार उदाहरण बने गुजरात मॉडल को एमपी में लागू करने की मांग कोई गुनाह तो नही है। लेकिन नारायण पर यह भारी पड़ सकती है।शायद उन्हें भी यह मालूम है। इसी वजह से खूब सोच समझ कर उन्होंने अपना कागजी कबूतर उड़ाया है।
हो सकता है कि उनकी देखा देखी बीजेपी की राजनीति में हाशिए पर पहुंच चुके कुछ बड़े और पुराने नेता भी अपना मुंह खोलें। क्योंकि उन्हें इस बात का अहसास है कि वे अपनी इनिग के आखिरी ओवर खेल रहे हैं।
कुछ भी हो! इस समय कैलाश और नारायण ने गूंगों को जुबान देने की चाल तो चल ही दी है! दोनों के निशाने पर "दोनो" ही हैं। आखिर है न अपना एमपी गज्ज़ब! है कि नहीं?
अरुण दीक्षित की ओर से साभार !