(Advisornews.in)
सुधीर पाण्डे
भोपाल(एडवाइजर):
मध्यप्रदेश के अगले विधानसभा चुनाव में सफलता अर्जित करने वाले राजनैतिक दल का स्वरूप क्या होगा, प्रभाव क्या होगा और उसकी सरंचना कैसी होगी, इसकी स्पष्ट संकेत पिछले तीन चुनान के दौरान मिल चुके है। यह संभव नहीं है कि मध्यप्रदेश सहित दो अन्य राज्यों के चुनाव के लिये राजनैतिक ऐजेंडा पार्टी आपकी मर्जी से निर्धारित कर ले। अब उन्हें आम जनता की समस्याओं को ध्यान रखकर अपना संकल्प पत्र बनाना होगा। वैसे तो मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में आम मतदाता की समस्याएं और उनका निवारण लगभग एक जैसा ही है। इसके बावजूद मध्यप्रदेश में अनेक विभिन्नताओं के होने के कारण मतदाता को प्रभावित करने की प्रक्रिया बिलकुल अलग होनी होगी।
समूचे देश की तरह मध्यप्रदेश भी जाग गया है और यह समझ चुका है कि बिना राजनैतिक दलों को मजबूर किये उसकी समस्याओं का अंत कही नहीं होने वाला। झूठ प्रपंच और झूठे वायदों के सहारे अब मध्यप्रदेश के रण को जीत पाना संभव नहीं है। मध्यप्रदेश राज्य की बुनियादी समस्याएं किसान मजदूरों से चलती हुई समूचे देश की भांति युवाओं की बेरोजगारी और बुनियादी सुविधाओं के अभाव में लगातार पलती नहीं है।
राज्य ने महसूस किया है कि यदि चुनाव के समय राजनीति को अनदेखा कर बेशर्म होकर अपनी समस्याओं के प्रति जागरूक रहा जाय, तो चाहे भाजपा हो या कांग्रेस उन वायदों को करने के लिये बाध्य होती है, जो आम मतदाता के जीवन में बुनियादी परिवर्तन लाने में सक्षम होता है। अब जबकि यह तय है कि राष्ट्रीय दल बनने के बाद आम आदमी पार्टी अपने मुफ्त के वायदों के साथ राज्य में कदम रखेगी। यह सहज ही अंदाज लगाया जा सकता है कि कांग्रेस और भाजपा को भी अपने पुराने राजनैतिक चरित्र को छोड़ना होगा। वैसे भी पिछले चुनाव का यह अनुभव रहा है कि भाजपा और कांग्रेस अपने हवा हवाई दावों और वायदों से निकलकर स्वास्थ्य, शिक्षा और बुनियादी सुविधा जैसे मुद्दों पर आने के लिये बाध्य हो गये हंै। 
आम आदमी पार्टी के आने का एक फायदा तो आम व्यक्ति को मिला कि झूठ और फरेब के भरोसे स्वयं को राष्ट्रीय दल बताकर आम मतदाता को ठगने वाले भाजपा और कांग्रेस को अपने आचरण में सुधार करना पड़ा। संभावना यह है कि आम आदमी पार्टी के वायदे जो गुजरात में काम नहीं आ सके, उन वायदों का ही मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ की राजनीति में व्यापक प्रभाव पड़ सकता है। यदि ऐसा हुआ तो कांग्रेस और भाजपा को अपनी जमीन कम से कम इन राज्यों में खोजनी पडे़गी। 
राजनीति के जानकार मानते है कि अलग-अलग खेमों में बंटे हुये वर्तमान के दो राष्ट्रीय दल आपसी गैंगवार में इस तरह उलझेंगे कि केवल वायदे और बडे़ नेताओं के चेहरों के अलावा उनके पास शायद ही कुछ शेष हो। मध्यप्रदेश कम से कम गुजरात नहीं है, जहां प्रधानमंत्री हर शहर में खटिया बिछाकर आम जनता के मध्य अपने प्रभाव का प्रदर्शन करेंगे। पिछले 19 सालों से भाजपा की सरकार की कमजोरियों को राज्य भुगत रहा है। वहीं 15 महीने की कांग्रेस सरकार के कार्यो का भी मूल्यांकन उसने किया है। इस बार के चुनाव में कम से कम मध्यप्रदेश के मतदाताओं के रूझान में परिवर्तन आना असंभव नहीं है। चुनाव पूर्व दोनों ही राष्ट्रीय दल अपने पुराने नेताओं या कार्यकर्ताओं के अलग होने की चिंताओं से भी पीड़ित रहेंगे। राजनीति में जिस अवसर की तलाश आम आदमी पार्टी को रहती है उसकी पूर्ति मध्यप्रदेश में हो पाना असंभव नहीं है। 
आगामी चुनाव राज्य के भविष्य और राजनीति की बदलती हुई धारा को स्थापित करने वाले होंगे। भाजपा जहां एक ओर 19 साल के झूठे वायदों और कुशासन पर लिपापोती करने की कोशिश करेंगी। वही कांग्रेस के पास वर्तमान में बताने के लिये कुछ नही है सिवाय इसके कि यदि हम आ गये तो .........