(Advisornews.in)
सुधीर पाण्डे
भोपाल(एडवाइजर):
भारतीय राजनीति की परिभाषा हिमाचल, गुजरात और दिल्ली महा पालिका के चुनाव परिणामों के बाद पूरी तरह बदल गई। आम आदमी पार्टी ने उन मुद्दों को चुनाव का मुख्य हथियार बना दिया, जो राजनैतिक दलों के लिये सिर्फ मंच पर भाषण देने का एक विषय थे। गुजरात में भारी विजय के लिये जिस तरह प्रधानमंत्री तक को गली-गली, शहर-शहर भटकना पड़ा। उसे भले ही सिस्टाचार की भाषा में अशोभनीय माना जाय, पर अब यह तय होता जा रहा है कि आम आदमी से जुड़कर आम आदमी की समस्याओं के हल के लिये राजनैतिक दलों को निर्णय लेने होंगे। निर्वाचन के लिये अब यह जरूरी नहीं रह गया है कि किसी दल का कोई नेता कितने बडे़ं आकार का है। जरूरी यह हो गया है कि उस दल ने आम आदमी की समस्याओं हल करने के लिये क्या ठोस कदम उठायें हैं।
गुजरात एक सम्पन्न राज्य है। वहां के मतदाता कई अन्य राज्यों के मतदाताओं की तरह आर्थिक विपन्नता के दायरे में नही आते हैं। यही कारण है कि दिल्ली मे निम्न मध्यम वर्गीय और निम्न वर्ग ने जिन रियायतों को राहत मान लिया और आपका मत आप के पक्ष में दे दिया। वहीं गुजरात में प्रधानमंत्री को चौराहे पर घुमता हुआ देखकर गुजराती गौरव से भर उठे, इसका अर्थ यह नहीं है कि भाजपा गुजरात में बहुत मजबूत है। भाजपा को भी गुजरात राज्य में भी अपने आप को बदलना होगा, उस रास्ते की खोज करनी होगी जो उसे नियमित रूप से आम आदमी की समस्याओं से जोड़ सके। भारतीय जनता पार्टी इस विजय को मोदी की लोकप्रियता से जोड़ सकती है, परंतु इस चुनाव में स्वयं भाजपा में कई संशोधनों की सम्भावना को जन्म दिया है। आम आदमी पार्टी को यह स्पष्ट संकेत मिला है कि व्यापारिक मानसिकता वाले राज्य में छोटी-छोटी राहतों की घोषणा कोई बड़ा आधार नहीं बना सकती हैं। गुजरात के लिये और गुजराती के लिये यह सम्मान का विषय है कि पिछले आठ वर्षों से एक गुजराती इस देश का प्रधानमंत्री बना हुआ है। इस आत्म सम्मान के भरोसे निम्न वर्गीय गुजराती भी हर कठिनाई को झेलने के लिये तैयार है, इसका मतलब यह नही है कि यह मौसम हमेशा बना रहेगा, और एक चेहरा बिना कुछ किये प्रांतीय मानसिकता में आत्म गौरव के भरोसे शासन कर सकेगा।
हिमाचल प्रदेश में आये चुनाव परिणाम राज्य की पांच साल बाद सत्ता बदल देने की प्रवृत्ति को प्रदर्शित करते हैं। इस जीत के लिये कांगे्रस ने कोई विशेष प्रयास या श्रम किया हो ऐसे प्रमाण नहीं है। इसके बाद भी कांग्रेस सत्ता के काफी करीब पहुंच कर आकड़ों के आधार पर सरकार बनाने का दावा कर सकती है। यदि आने वाले पांच सालों के दौरान कांग्रेस टूटी या बिकी और जनसमस्याओं को अपने आश्वासनों को पूरा करने में उसने कोई कोताही बरती तो हिमाचल प्रदेश का भविष्य भी असुरक्षित हो जायेगा। कांग्रेस जीत की सम्भावना के साथ ही अपने संस्कारों के अनुसार पद की दौड़ में शामिल हो गई है। आंतरिक विद्रोह की पहली चिंगारी किस दिन प्रगट हो जाये कोई नहीं जानता। अभी तो प्रश्न यह है कि बहुमत के बाद भी ये अगले पांच साल हिमाचल में कांग्रेस संयुक्त रह पायेगी।
दिल्ली महा नगर पालिका के चुनाव में आम आदमी पार्टी ने मोदी की भारतीय जनता पार्टी को पटखनी दे दी है। वार्ड की समस्याओं को समझे बिना कई राज्यों की मुख्यमंत्री और केंद्रीय मंत्रियों ने यहा भाजपा की ओर से अपनी जान लगा दी। प्रचार अभियान के दौरान विभिन्न राज्यों के नेता इस अभियान में अपनी भूमिका न होते हुये भी लगातार श्रम करते रहे, यह श्रम वास्तविक था इसमें संदेह है। दूसरी और आम आदमी पार्टी ने जिन मुद्दों को चुनाव में हथियार बनाया वो दिल्ली के निम्न वर्ग लिये एक बड़े राहत का संदेश लेकर आये थे। कांग्रेस इस जगह समाप्त हो चुकी है, उसके कार्यकर्ता और नेता अब खुले बाजार में अपने दिमागी षड़यंत्रों को लेकर विक्रय के लिये उपलब्ध है। यह बात अलग है कि कोई भी दूसरा दल नेताओं के इस बड़े गुट के साथ कोई चर्चा नहीं चाहता। आम आदमी पार्टी के दायरे का और उसकी राजनैतिक शैली का सफल और विफल परिक्षण इस चुनाव के दौरान हुआ। भारतीय जनता पार्टी के नरेन्द्र मोदी के लोकप्रियता का परिक्षण इस चुनाव में हुआ। कुल मिलाकर यदि मानिये तो राजनीति बदल चुकी है, अब आजादी के इतिहास का उल्लेखकर वोट बटोरना, 370 और राम मंदिर निर्माण का उल्लेखकर, नगर निगम के वार्ड के मतदाताओं भ्रमित करने की कोशिश करना और भारत जोड़ों यात्रा में तांत्रिकों के प्रयोग और नागिन डांस जैसे प्रदर्शन से मतदाता प्रभावित होता नजर नहीं आ रहा है। बेहतर होगा राजनैतिक दल अब उस एजेंडे पर आ जाय जहां स्कूल, अस्पताल, बिजली, पानी जैसी समस्याओं पर वे जानकारी हासिल करें और आम व्यक्ति के साथ संवाद करके इस समस्याओं का हल खोजनें की कोशिश करें।