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सुधीर पाण्डे 
भोपाल(एडवाइजर):
अब तक हजारों किलोमीटर चल चुकी भारत जोड़ों पदयात्रा मध्यप्रदेश में आकर तंत्रमंत्र विज्ञान और जातिवादी कर्मकाण्ड के बीच उलझ गई। एक खबर के अनुसार मध्यप्रदेश में इस यात्रा को महान कर्मयोगी और चर्चित संत कम्प्यूटर बाबा का आर्शिवाद दिलवाया गया। राज्य के एक वरिष्ठ कांग्रेसी नेता ने राहुल गांधी को अभयदान देने के लिये यात्रा के दौरान कम्प्यूटर बाबा की भेट राहुल गांधी से करा ही दी। मध्यप्रदेश की राजनीति कर्मयोग पर नहीं चलती, यहां की राजनीति में राजनैतिक षड़यंत्रों के अतिरिक्त जातिगत राजनीति, उम्रगत राजनीति और तंत्रमंत्र विज्ञान का भी एक विशेष मिश्रण रहता है। 
तंत्र विद्या के जानकार बताते है कि मध्यप्रदेश में इतने घोर तांत्रिक उपलब्ध है कि वे कुछ क्षण किसी व्यक्ति के संम्पर्क में आकर अपनी विद्या को उस व्यक्ति विशेष तक को प्रभावशील कर सकते है। तंत्र विद्या के विभिन्न अध्यायों में से एक महत्वपूर्ण क्रिया वशीकरण की भी होती है। इस क्रिया के तहत संबंधित व्यक्ति का तांत्रिक के साथ संक्षिप्त वार्तालाप या निगाहों का मिलना तक एक मोह पाश का निर्माण कर देता है। चुकी कम्प्यूटर बाबा और मिर्ची बाबा मध्यप्रदेश की राजनीति में पिछले कुछ सालों से ही सक्रिय हुये है और इन दोनों के बारे में ही यह भी प्रचलित है कि, ये चाहे तो अपने योग के दम पर किसी को भी प्रभावित कर सकतें हैं। मध्यप्रदेश में जब से कम्प्यूटर बाबा की मुलाकत राहुल गांधी के साथ कराई गई है, कई लोगों का मत है कि प्रयोग का सिलसिला शुरू हो चुका है। इस समूची यात्रा में दिग्विजय सिंह के द्वारा कम्प्यूटर बाबा को राहुल गांधी से परिचय करा देना अपने आप एक महत्वपूर्ण घटना है।
कमलनाथ के 15 माह के शासन काल के दौरान मध्यप्रदेश के ये दोनों ही संत प्रभावशील रहें। यहां तक कि इनमें एक संत को राज्य मंत्री का दर्जा देकर कांग्रेस की मजबूती के लिये नियमित तंत्र की क्रिया भी कराई गई। इसके कई प्रमाण 15 महीनों के शासनकाल के दौरान ही मिलते है। कहां तो यह भी जाता है अज्ञात रूप से 15 महीनों तक सत्ता का नियंत्रण दिग्विजय सिंह के हाथ में रहने के पीछे भी इस तंत्र क्रिया का बहुत बड़ा योगदान था । 
कल्पना कीजिए कन्याकुमारी से कश्मीर तक कांग्रेस को मजबूती देने के लिये पद यात्रा करने वाले राहुल गांधी यदि अचानक इस तंत्र वायरस के प्रभाव में आ गये तो इसमें यह संदेह नहीं है कि राष्ट्रीय स्तर पर सत्ता का संचालन अज्ञान व्यक्ति के हाथ में चले जायेगा। दूसरे अर्थों में कहें तो मध्यप्रदेश में तंत्र प्रभाव का पूर्व में परिक्षण कर चुका कोई व्यक्तित्व समूची भारतीय राजनीति में कांग्रेसी की भूमिका का निर्धारण राहुल गांधी के माध्यम से करेगा। कुछ ऐसा समझ लीजिये कि दिल्ली में बैठा हुआ सेटेलाइट मध्यप्रदेश से संचालित किया जायेगा और प्रत्येक कार्य का निर्धारण एवं सिद्धि के लिए राहुल गांधी को माध्यम बनाकर हर प्रयोग मध्यप्रदेश में केंद्रीत होगा। कमलनाथ भले ही इस बात को न माने कि मध्यप्रदेश में अपने कार्यकाल के दौरान अज्ञात शक्तियों ने उनके हाथ पैर बांध रखे थे, पर उनकी कार्य प्रणाली से हर जानने वाले को यही संकेत मिलता था। कमलनाथ स्वतंत्र रूप से मध्यप्रदेश की राजनीति नहीं कर सके, आज भी कुछ अवसरों को छोड़ दिया जाए तो कमलनाथ के क्रियाकलाप एवं निर्देश किन्हीं अपरिचित हाथों से लिखे हुये प्रतित होते हैं। यही कारण है कि कांग्रेस राज्य में उस राजनैतिक धारा को नहीं पकड़ पाई जिसकी उसे जरूरत थी।