(Advisornews.in)
सुधीर पाण्डे
भोपाल(एडवाइजर):
आकड़ों पर आधारित भारतीय राजनीति जनसंवेदनाओं और आम व्यक्ति की परेशानियों से बहुत दूर होती जा रही है। कम्प्यूटर एवं अन्य यांत्रिक माध्यमों से लोकतंत्र पर आधारित भारतीय राजनीति को पिछले तीन दशक के दौरान लगातार भ्रमित किया जा रहा है। भारत में जनतंत्र की बुनियाद जिस जन भावना पर आधारित निर्वाचन प्रणाली पर हुई थी, वह क्रमशः बदलती जा रही है। निर्वाचन के पश्चात बनी हुई सरकार को खरीद लेने की परम्परा को एक दशक पूर्व ही खुले आम शुरू हुई है। इसके पहले के इतिहास में भी लोकतंत्र के मूल आधार निर्वाचन प्रक्रिया को अलग-अलग माध्यम से प्रभावित किया जाता रहा है। केवल पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त टीएन शेषन के कार्यकाल को यदि वास्तविक सुधार का काल माना जाए तो इसके आगे और पीछे के कार्यकाल को अप्रभावित नहीं कहा जा सकता। 
लोकतांत्रिक मूल्यों में जिस तरह की गिरावट आई है वह स्पष्ट संकेत करती है कि भारत लोकतंत्रीय मर्यादाओं को लांघकर अब लोकतंत्र की मण्डी बनने की ओर अग्रसर है। इस तथ्य में यह संशोधन भी कर देना आवययक है कि निर्वाचन के पूर्व और निर्वाचन के पश्चात, अवैध रूप से इकट्ठा किया गया कालाधन इन मूल्यों को प्रभावित करने के लिये अपना पूरा जोर लगायेगा। यह भी तय है कि लोकतंत्र एक मजाक बन कर आने वाले कल में रह जाने वाला है। क्योंकि इसकी रक्षा के लिये निर्मित की गई संवैधानिक संस्थायें क्रमशः चुनी हुई सरकार के माध्यम से व्यावसायिक रणनीतिकारों एवं षड़यंत्रकारियों के प्रभाव में जाने के लिए प्रस्तुत है। यह भी हो सकता है कि एक बार चुनी गई सरकार जो उद्योगपतियों के विश्वास की हो। उन सारी मान्यताओं को पूरी तरह निरस्त कर दे या उन्हें छल ले जो लोकतंत्र के बुनियादी सिद्धांतों की रक्षा करते है। 
लोकतंत्र के नाम पर जो तमाशा इस देश में चल रहा है, उसे भारत का एक सामान्य नागरिक भी अपने तरीके से समझने की कोशिश कर रहा है। आम आदमी की समस्याएं अपनी जगह है पर संवैधानिक संस्थाओं के क्रियाकलापों की वास्तविक समीक्षा अभी भी कई अघोषित प्रतिबंधों के बावजूद अपने मानसिक स्तर के अनुसार गांव, कस्बों और शहरों के चौराहे पर आम आदमी कर रहा है। 
लोकतंत्र में इतने फार्मूले कभी नहीं बने थे जितना पिछले 8 वर्षो के दौरान जनता को समझाये गये है, आम आदमी 3-डी, 4-सी, 5-ए और 6-ई में उलझ के रह गया है। वास्तव में आम आदमी को अपने दैनिक कार्यो के लिये और सरकार के कामकाज की समीक्षा करने के लिये जो सहज मटेरियल चाहिये वो बाजार से लापता है। अपोलो यान क्या है इससे आम आदमी का सिर्फ इतना ही मतलब है कि वह चन्द्रमा में उतरा था एक राकेट होता था। उस राकेट की बनावट, मशीन, तकनीकी यंत्र इनसे आम आदमी से कोई लेना देना नहीं है। जब समूचा विश्व चिल्लता है कि अपोलो का चांद में उतरना उपलब्धि है तो भारत का ही नहीं विश्व का सामान्य व्यक्ति इसे सहज रूप में स्वीकार कर लेता है। वहीं आम आदमी आज सरकार द्वारा वित्तीय और प्रशासनिक प्रक्रिया में नये-नये फार्मूले सुनकर भ्रमित हो रहा है। 
वास्तव में लोकतंत्र खतरे में है। हम सामान्य व्यक्ति को विज्ञान के चमत्कार के फार्मूले सुनाकर उसे छोटा होने का एहसास निरन्तर दिला रहे हैं। दूसरी और जातिवादी व्यवस्था ने अब हर गांव वाले के द्वारा किये जाने वाले अभिनन्दन की राम-राम की परम्परा को भी विलोपित कर दिया है सही मानिये तो लोकतंत्र सचमुच खतरे में है।