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विभीषणों की मंडी...!!

शिक्षक के घर में जन्म मिला है! इसलिए होश संभालने के साथ ही राम और रामायण के बारे में सुनता आया हूं। गांव में हमारी बड़ी मां हर बात पर रामायण की एक चौपाई सुना देती थीं। रामायण की बात होती तो राम और रावण के साथ विभीषण का जिक्र जरूर आ जाता। जब छोटे थे तब लगता था कि भगवान की मदद करके विभीषण ने बहुत ही अच्छा काम किया था। लेकिन जब थोड़े बड़े हुए तब समझ में आया कि भले ही विभीषण ने  राम की मदद की थी लेकिन  भाई से द्रोह करने की वजह से वे हमेशा घृणा के पात्र ही रहे! साथ ही यह भी कि यदि भगवान की मदद की थी तो फिर भगवान विभीषण को लंका के राज्य के साथ समाज में सम्मान क्यों नही दिला पाए?
इधर कुछ दिनों से अपने मन में विभीषण को लेकर एक सवाल उठ रहा है! यह तो पढ़ा है कि उनका बड़ा भाई दस सिर वाला दशानन था। एक और भाई कुंभकर्ण था। भतीजा मेघनाद मायावी था।लेकिन विभीषण कितने थे? एक या अनेक।
अब आप पूछेंगे कि यह सवाल मेरे मन में क्यों आया? दरअसल पिछले एक पखवाड़े से अपने एमपी में विभीषण छाए हुए हैं। हर ओर उनकी चर्चा है। एक साथ दर्जनों विभीषण दिखाए जा रहे हैं।
देश और प्रदेश में राज कर रहे "राम सेवक" विभीषण को लेकर बड़े बड़े दावे कर रहे हैं। पिछले दिनों तो बहुत बड़ी बात हुई। मध्यप्रदेश पर भारी साबित हो रहे एक रामभक्त नेता ने तो भरी सभा में एक साथ कई "आधुनिक विभीषण" मंच से दिखाए! उन्होंने भरे मंच से दावा किया कि इन विभीषणों की मदद से हम राज कर रहे हैं। कहा यह भी जा रहा है कि कुछ और "विभीषण" राम सेवकों की पार्टी में आने वाले हैं!
राम सेवकों की बातों से ऐसा लग रहा है जैसे देश में ,खासतौर पर अपने एमपी में विभीषणों की मंडी लगी हुई है। मेला भरा हुआ है।वैसे एमपी में कई मशहूर मेले लगते हैं। इनमें चित्रकूट का वैशाखनंदन मेला तो पूरे देश में विख्यात है।ठीक वैसे ही जैसे बिहार के सोनपुर का मेला और राजस्थान के पुष्कर का मेला जाना जाता है।
पिछले कुछ दिन से रामभक्त लगातार यह दावा कर रहे हैं उनके हाथ मजबूत करने के लिए कुछ और "विभीषण" उनके पाले में आ रहे हैं। प्रदेश पर भारी नेताजी के मुताबिक दो दर्जन से ज्यादा विभीषण अब तक उनके साथ आ चुके हैं। 20 से ज्यादा और आने वाले हैं! बंगाल का जादू देख चुके एक बड़े नेता ने तो आज ही कहा है कि तीन चार विभीषण उनके संपर्क में हैं! ससुराल का भरपूर ख्याल रखने वाले एक नेताजी 20 का आंकड़ा दे रहे हैं।
विभीषणों की मदद और कुबेर के खजाने की मदद से अपनी खोई "जागीर" वापस हासिल करने वाले सूबेदार तो  लंका घोषित किए जा चुके विपक्ष की ओर से आने वाले किसी भी जानदार को विभीषण का ही रूप मान के, दौड़ के गले लगा लेते हैं। उनके अभेद्य किले के द्वार विभीषणों के लिए हमेशा खुले रहते हैं।
इन दिनों प्रदेश से एक यात्रा गुजर रही है! पता नही राम सेवक उससे इतना क्यों डरे हुए हैं! यात्रा के डर के मारे वे  शाखा दर शाखा छलांग लगा रहे हैं। यात्रा में भी वे विभीषण  खोज में दिन रात एक किए हुए हैं!
मेरी तो समझ में नहीं आ रहा कि कलयुग में विभीषण वंश इतना कैसे फलफूल रहा है। दशानन का तो एक ही भाई था विभीषण! लेकिन आज अकेले एमपी में दर्जनों घूम रहे हैं। उन्हें सम्मानित किया जा रहा है!पूज्य बताया जा रहा है।आखिर इतने विभीषण कहां से आ रहे हैं।
एक सवाल और मन में घुमड़ रहा है।कहते हैं कि उस  विभीषण ने तो सीता का हरण करने वाले अपने दुराचारी भाई का वध राम  से कराया था। बदले में भाई की गद्दी हासिल की थी। हजारों साल लंका पर राज भी किया था। कहा तो यह भी जाता है कि दक्षिण पूर्व एशिया के देशों में आज भी विभीषण के वंशज राज कर रहे हैं।
लेकिन वह विभीषण राम के राज्य में हिस्सा लेने अयोध्या नही आया था। बस उसने अपने विमान से राम को सपरिवार अयोध्या भिजवा दिया था।
पर आज के  "पूज्य और सम्मानित" विभीषणों ने तो गजब ही कर दिया है। उन्होंने पहले तो भेद देने के नाम पर राम सेवको से बोरों में भरकर दक्षिणा ली! अपने भाई को सत्ता से हटवाया।फिर  राम सेवकों की छाती पर पांव रखकर सत्ता की थाली  भी बांट ली।
राम के जरिए अपने भाई का वध कराने वाले विभीषण तो अकेले थे। लेकिन रामसेवकों की मदद के लिए तो रोज नए विभीषण आ रहे हैं। ऐसा लग रहा है कि रक्तबीज के रक्त का छींटा उन पर पड़ गया है। रोज नए पैदा हो रहे हैं।
इन "पूज्य विभीषणों" की कई प्रजातियां भी दिखाई दे रहीं हैं। कोई राष्ट्र स्तरीय है तो कोई प्रदेश स्तरीय! कोई संभाग स्तर का है तो कोई जिला स्तर का।किसी का मूल्य करोड़ों में है तो कोई कुर्सी की एवज में आ रहा है। कुछ अपना कारोबार बचाने के लिए राम सेवक दल में आ रहे हैं तो कुछ नया कारोबार करने आ रहे हैं।
ऐसा नहीं है कि अपने एमपी में ही ऐसा हो रहा है।हुआ तो दिल्ली सहित कई राज्यों में है लेकिन विभीषणों की चर्चा एमपी में ही हो रही है।
अजीब सा माहौल बना दिया है इन्होंने! हालत यह है कि इनकी बढ़ती संख्या ने भरत लक्ष्मण और शत्रुघ्न को भी चिंता में डाल दिया है। उन्हें लग रहा है कि कहीं विभीषण उनका भी हक न मार लें! पर किसी भी कीमत पर सत्ता हासिल करने हवस ने उन्हें हाशिए पर धकेल दिया है।
लक्ष्मण और भरत परेशान हैं। उधर विभीषणों के मेले में दलाल माल बयाना लेकर घूम रहे हैं। नारद जी के वंशज भी अपनी नाक हर जगह घुसेड़ रहे हैं। रोज यही अटकलें लगती हैं आज कौन बिका? या किसका सौदा चल रहा है। लेकिन फिर भी लंका वाले नाच रहे हैं।
अब कोई बिके या रहे।कुछ भी हो। अपना एमपी तो गज्जब है ही। है कि नहीं!
अरुण दीक्षित की ओर से साभार।