(Advisiornews.in)
सुधीर पाण्डे
भोपाल(एडवाइजर):
राजनीति में देशाटन करना, पैदल मार्ग के जरिये करना, विध्वंस और निर्माण दोनों को ही जन्म दे सकता है। राजनीति में पदयात्रा का अर्थ यात्रा मार्ग पर पैदल चलना, क्रिकेट खेलना, नृत्य करना या स्थानीय लोगों से केवल हाथ मिलाना नहीं है। देश में स्वतंत्रता के पूर्व और पश्चात जितनी भी यात्रायें हुई हैं, उन्हें करने वालों ने यात्रा मार्ग पर चलते हुये न सिर्फ देश की संस्कृति को बारीकी से समझा है, बल्कि यात्रा के प्रत्येक पड़ाव में उन्होंने स्थानीय बुद्धिजीवी एवं जागृत लोगों के माध्यम से हुई चर्चाओं से एक नई क्रांति की शुरूआत की है। यात्रा शुरू हो और कुछ दिनों बाद उसका अंत हो जाए, अंत में एक बड़ी सभा का आयोजन हो जाए और यात्रा के अनुभवों पर पांच सितारा होटलों से लेकर छोटे-छोटे नगरों में संस्मरण सुनाने का दौर शुरू हो, इससे राजनीति की यात्रा पूर्ण नहीं होती। कई लोगों ने इन पैदल यात्राओं पर बड़ी-बड़ी पुस्तकें लिखी हैं, पुस्तकों में व्यक्त किये गये अनुभव यात्रा करने वाले के व्यक्तिगत थे, परंतु उन अनुभवों को आम व्यक्ति की विरासत बना पाने में लिखने वाले चुक गए।
यात्रा का प्रत्येक कदम, प्रत्येक दिवस और प्रत्येक पड़ाव आपको क्या अनुभव दे गया इसका एहसास आपको कई दिशाओं से करना पड़ता है। यात्रायें जहां होती हैं वहां का प्रचार माध्यम यात्रा को विराट बताकर उसकी कमजोरियों और खूबियों को जाहिर करते हैं। स्वयं यात्री को यह अनुभव होना चाहिए कि एक निर्धारित कालखण्ड की यात्रा में उसने स्वयं क्या पाया है और क्या खोया है। यात्रा के साथ स्थानीय स्तर पर पैदा होने वाले प्रादेशिक षड़यंत्रों और सहयात्रियों के स्वार्थ की एक बड़ी श्रृंखला चलती है। किसी बड़े व्यक्ति की पद यात्रा स्थानीय और प्रादेशिक नेताओं को चमचागिरी की हद तक जाने के लिये प्रेरित कर देती है। आजादी की पूर्व और आज की यात्राओं में सबसे बड़ा अंतर केवल लक्ष्य का है, आजादी के पूर्व जनजागरण आजादी के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये किया जाता था। यात्रा में चलने वाले पद यात्री गांधी, नेहरू, पटेल जैसे कद के नेता होते थे, जिनका सहज आकर्षण यात्रा मार्ग से सैकड़ों कि.मी. दूर बैठे हुये आम व्यक्ति को यात्रा में चलने के लिये स्वप्रेरणा से बाध्य करता था। 
आज की यात्रायें सभी सुविधाओं से युक्त होती हैं। इन यात्राओं का आकर्षण स्थानीय और प्रदेश स्तर के नेताओं की घटिया चमचागिरी और नेतृत्व के प्रति अपनी झूठी आस्था को प्रगट करने तक सिमित रहता है। मुख्य यात्री के साथ चलने वाले प्रदेशिक नेताओं का यदि कोई वैज्ञानिक परिक्षण करा लिया जाय तो यह स्पष्ट हो जायेगा कि उनके दिमाग में यात्रा या मुख्य यात्री के प्रति श्रद्धा और सम्मान के स्थान पर अपने स्वार्थो की पूर्ति का एक मिशन प्रभावी ढंग से चलता है। स्थानीय स्तर पर अपने सहयोगियों के माध्यम से प्रदेशिक नेता अपने गुट के लोगों को मुख्य यात्री से मिलवाने और ठीक उनके पड़ोस में चलकर फोटो खिचवाने के लिये पूर्व से ही प्रेरित करते हैं। यही करण है एक आसान मार्ग पर चलने वाली यात्रा एक नाटक बन कर रह जाती है। जिसमें फटाकेँ फोड़ें जा सकते है, नागिन डांस किया जाता है, पांच सितारा संस्कृति का भोजन किया जाता है। पर यात्रा के समाप्त होने तक उस यात्रा में आम आदमी को जोड़ पाने की क्षमता नहीं होती है। जो व्यक्ति इस यात्रा का मूल आधार है उसे यात्रा समाप्त होने के बाद लोगों को यह समझाना पड़ता है कि आखिर उसने इतना लम्बा पैदल सफर किस उद्देश्य की पूर्ति के लिये किया।